DRDO की नई दवा 2DG साबित होगी गेमचेंजर! देखें क्या बोले साइंटिस्ट
कोरोना महामारी से लड़ने के लिए डीआरडीओ (DRDO) की एंटी-कोविड दवा, 2DG कल से मरीजों को मिलनी शुरू हो जाएगी. DRDO की एक लैब, इंस्टीट्यूट ऑफ न्यूक्लियर मेडिसिन एंड एलाइड साइंसेज (INMAS) द्वारा एंटी-कोविड दवा ‘2-डीऑक्सी-डी-ग्लूकोज’ (2-DG) को हैदराबाद स्थित डॉक्टर रेड्डी लैब (Dr Reddy) के साथ मिलकर तैयार किया है. क्लीनिकल-ट्रायल के बाद ड्रग्स कंट्रोलर जनरल ऑफ इंडिया ने हाल ही में इसे इमरजेंसी इस्तेमाल के लिए हरी झंडी दी है. परीक्षण में जो बात सामने आई है उसके मुताबिक ये दवा कोरोना मरीजों में संक्रमण बढ़ने से रोकने में मदद करती है. क्या DRDO की नई दवा 2DG साबित होगी गेमचेंजर? देखें क्या बोले साइंटिस्ट.
नए म्यूटेशन से निपटने में कैसे काम आएगी DRDO की नई दवा 2-DG, जानें हर सवाल का जवाब
DRDO New Medicine For Corona: हमारा इम्यून सिस्टम एक दीवार की तरह होता है। मान लीजिए कि कोई दीवार इतनी मजबूत होती है कि आप 10 बार भी उस पर चोट करें, तो उसे कुछ नहीं होगा। इसके विपरीत एक कमजोर दीवार पर 3-4 बार चोट करने पर ही दरार दिखने लगती है।
पिछले दिनों ड्रग कंट्रोलर ऑफ इंडिया ने रक्षा अनुसंधान एवं विकास संगठन (DRDO) की बनाई एक दवा 2डीजी कोरोना मरीजों को दिए जाने की सिफारिश की है। यह दवा आईएनएमएएस-डीआरडीओ के दो वैज्ञानिकों डॉ. सुधीर चांदना और डॉ. अनंत भट्ट ने तैयार की है। क्या है यह दवा और कैसे यह काम करती है, इस पर डीआरडीओ के रेडिएशन बॉयोसाइंस विभाग के हेड डॉ. सुधीर चांदना ने विस्तार से बताया है।
सबसे पहले इस दवा के बारे में बताइए, क्या यह वायरस को खत्म कर सकती है?
यह दवा ग्लूकोज का बदला हुआ रूप है। इसे 2 डीऑक्सी-डी-ग्लूकोज (2डीजी) कहते हैं। यह दवा वायरस की ग्रोथ रोकती है। ऐसा हमने पिछले साल अप्रैल-मई में एक्सपेरिमेंट करके टेस्ट किया। वायरस से हमारे शरीर में जब कुछ सेल्स इन्फेक्ट हो जाते हैं, तब वे ज्यादा ग्लूकोज मांगते हैं। हम मरीज को ग्लूकोज का यह बदला हुआ रूप देते हैं, तो इसके साथ-साथ 2डीजी भी उन सेल्स में जाता है और वायरस की ग्रोथ में रुकावट आ जाती है। जब हम मरीज को सुबह शाम इसकी डोज देते हैं तो वायरस आगे ग्रो नहीं कर पाता और तब हमारा सिस्टम वायरस को खत्म करने में मदद करता है।
यह दवा ग्लूकोज का बदला हुआ रूप है। इसे 2 डीऑक्सी-डी-ग्लूकोज (2डीजी) कहते हैं। यह दवा वायरस की ग्रोथ रोकती है। ऐसा हमने पिछले साल अप्रैल-मई में एक्सपेरिमेंट करके टेस्ट किया। वायरस से हमारे शरीर में जब कुछ सेल्स इन्फेक्ट हो जाते हैं, तब वे ज्यादा ग्लूकोज मांगते हैं। हम मरीज को ग्लूकोज का यह बदला हुआ रूप देते हैं, तो इसके साथ-साथ 2डीजी भी उन सेल्स में जाता है और वायरस की ग्रोथ में रुकावट आ जाती है। जब हम मरीज को सुबह शाम इसकी डोज देते हैं तो वायरस आगे ग्रो नहीं कर पाता और तब हमारा सिस्टम वायरस को खत्म करने में मदद करता है।
भारत में कोरोना वैक्सीन के दूसरे डोज की समयावधि बढ़ाना सही फैसला: डॉक्टर एंथनी फाउचीवायरस पहले के 2-3 दिन गले या नाक में रहता है, क्या पहले दिन से ही यह दवा दी जा सकती है ?
जो क्लिनिकल ट्रायल हमने किए, वे हमने अस्पताल में भर्ती मरीजों पर किए। उन मरीजों पर जो शुरुआती दौर से निकल कर मॉडरेट लेवल पर आ चुके थे, और कुछ गंभीर मरीज भी थे। पर हां, इस दवा का जो मैकेनिज्म है वह शुरुआती दौर में लेने में भी बहुत फायदा करेगा। अभी हमें मॉडरेट से सीवियर मरीजों पर इसके इस्तेमाल की अनुमति मिली है, आगे जैसे-जैसे दवा का प्रयोग बढ़ेगा, ड्रग कंट्रोलर से ही आगे के दिशा-निर्देश लिए जाएंगे।
वायरस पहले के 2-3 दिन गले या नाक में रहता है, क्या पहले दिन से ही यह दवा दी जा सकती है ?जो क्लिनिकल ट्रायल हमने किए, वे हमने अस्पताल में भर्ती मरीजों पर किए। उन मरीजों पर जो शुरुआती दौर से निकल कर मॉडरेट लेवल पर आ चुके थे, और कुछ गंभीर मरीज भी थे। पर हां, इस दवा का जो मैकेनिज्म है वह शुरुआती दौर में लेने में भी बहुत फायदा करेगा। अभी हमें मॉडरेट इस दवा को बनाने की शुरुआत कैसे हुई?
मेरे साथी डॉ. अनंत नारायण भट्ट ने इस विषय पर पिछले साल मार्च-अप्रैल के आसपास बातचीत की और बताया कि इस दवा को लेकर पहले से कई सारी रिपोर्ट्स और स्टडीज हैं। उन स्टडीज में पाया गया कि इसके मॉलिक्यूल्स ने कई तरह के वायरसों की बढ़त रोकी। ये स्टडीज 1959 से लेकर 2018-19 के बीच की थीं। अब हमारे सामने कोरोना वायरस था, जिस पर इसके असर की स्टडी करनी थी। उसके लिए मेरे साथी डॉ. अनंत सेंटर फॉर सेल्युलर एंड मॉलिक्यूलर बायॉलजी, हैदराबाद गए, जहां कोरोना के कल्चर की स्टडी होती है।हमारे चेयरमैन डॉ. जी सतीश रेड्डी का कहना था कि अगर इस दवा में दम है तो हमें काम शुरू कर देना चाहिए। हमने काम शुरू किया तो एक्सपेरिमेंट में ये बात सामने आई कि कोरोना वायरस जब सेल्स में इन्फेक्ट करता है, तो इस दवा को देने से इसकी ग्रोथ रुक जाती है। मगर सार्स कोविड वायरस पर एक्सपेरिमेंट करना आसान नहीं है, तो बार-बार ये एक्सपेरिमेंट्स किए गए। जब नतीजे पॉजिटिव आने लगे, तो हमने ड्रग कंट्रोलर से आग्रह किया कि हमें क्लिनिकल ट्रायल की मंजूरी दी जाए। हमने जो क्लिनिकल ट्रायल किए, उनमें सभी पेशेंट अस्पताल में ऑक्सिजन सपोर्ट पर थे।आरटी पीसीआर रिपोर्ट में सीटी वैल्यू आती है तो क्या यह माना जाए कि इस दवा की खुराक भी उस वैल्यू से निर्धारित होगी?
हमारा इम्यून सिस्टम एक दीवार की तरह होता है। मान लीजिए कि कोई दीवार इतनी मजबूत होती है कि आप 10 बार भी उस पर चोट करें, तो उसे कुछ नहीं होगा। इसके विपरीत एक कमजोर दीवार पर 3-4 बार चोट करने पर ही दरार दिखने लगती है। ठीक उसी तरह कमजोर इम्यून सिस्टम पर लक्षण जल्दी दिखने लगते हैं। फिर इंसान का इम्यून सिस्टम ही तय करता है कि किसी वायरस का उसके शरीर में कितना असर होगा। इसलिए सीटी वैल्यू मात्रा बताती है, और उसका लक्षणों से सीधा ताल्लुक नहीं मिला है।कोरोना में अब कोई एक मानक लक्षण नहीं ,अलग-अलग लक्षण हैं, क्या यह दवा सभी तरह के लक्षणों पर असरदार होगी?
जो क्लिनिकल ट्रायल हमने किए, वे हमने अस्पताल में भर्ती मरीजों पर किए। उन मरीजों पर जो शुरुआती दौर से निकल कर मॉडरेट लेवल पर आ चुके थे, और कुछ गंभीर मरीज भी थे। पर हां, इस दवा का जो मैकेनिज्म है वह शुरुआती दौर में लेने में भी बहुत फायदा करेगा। अभी हमें मॉडरेट से सीवियर मरीजों पर इसके इस्तेमाल की अनुमति मिली है, आगे जैसे-जैसे दवा का प्रयोग बढ़ेगा, ड्रग कंट्रोलर से ही आगे के दिशा-निर्देश लिए जाएंगे।
वायरस पहले के 2-3 दिन गले या नाक में रहता है, क्या पहले दिन से ही यह दवा दी जा सकती है ?जो क्लिनिकल ट्रायल हमने किए, वे हमने अस्पताल में भर्ती मरीजों पर किए। उन मरीजों पर जो शुरुआती दौर से निकल कर मॉडरेट लेवल पर आ चुके थे, और कुछ गंभीर मरीज भी थे। पर हां, इस दवा का जो मैकेनिज्म है वह शुरुआती दौर में लेने में भी बहुत फायदा करेगा। अभी हमें मॉडरेट इस दवा को बनाने की शुरुआत कैसे हुई?
मेरे साथी डॉ. अनंत नारायण भट्ट ने इस विषय पर पिछले साल मार्च-अप्रैल के आसपास बातचीत की और बताया कि इस दवा को लेकर पहले से कई सारी रिपोर्ट्स और स्टडीज हैं। उन स्टडीज में पाया गया कि इसके मॉलिक्यूल्स ने कई तरह के वायरसों की बढ़त रोकी। ये स्टडीज 1959 से लेकर 2018-19 के बीच की थीं। अब हमारे सामने कोरोना वायरस था, जिस पर इसके असर की स्टडी करनी थी। उसके लिए मेरे साथी डॉ. अनंत सेंटर फॉर सेल्युलर एंड मॉलिक्यूलर बायॉलजी, हैदराबाद गए, जहां कोरोना के कल्चर की स्टडी होती है।हमारे चेयरमैन डॉ. जी सतीश रेड्डी का कहना था कि अगर इस दवा में दम है तो हमें काम शुरू कर देना चाहिए। हमने काम शुरू किया तो एक्सपेरिमेंट में ये बात सामने आई कि कोरोना वायरस जब सेल्स में इन्फेक्ट करता है, तो इस दवा को देने से इसकी ग्रोथ रुक जाती है। मगर सार्स कोविड वायरस पर एक्सपेरिमेंट करना आसान नहीं है, तो बार-बार ये एक्सपेरिमेंट्स किए गए। जब नतीजे पॉजिटिव आने लगे, तो हमने ड्रग कंट्रोलर से आग्रह किया कि हमें क्लिनिकल ट्रायल की मंजूरी दी जाए। हमने जो क्लिनिकल ट्रायल किए, उनमें सभी पेशेंट अस्पताल में ऑक्सिजन सपोर्ट पर थे।आरटी पीसीआर रिपोर्ट में सीटी वैल्यू आती है तो क्या यह माना जाए कि इस दवा की खुराक भी उस वैल्यू से निर्धारित होगी?
हमारा इम्यून सिस्टम एक दीवार की तरह होता है। मान लीजिए कि कोई दीवार इतनी मजबूत होती है कि आप 10 बार भी उस पर चोट करें, तो उसे कुछ नहीं होगा। इसके विपरीत एक कमजोर दीवार पर 3-4 बार चोट करने पर ही दरार दिखने लगती है। ठीक उसी तरह कमजोर इम्यून सिस्टम पर लक्षण जल्दी दिखने लगते हैं। फिर इंसान का इम्यून सिस्टम ही तय करता है कि किसी वायरस का उसके शरीर में कितना असर होगा। इसलिए सीटी वैल्यू मात्रा बताती है, और उसका लक्षणों से सीधा ताल्लुक नहीं मिला है।कोरोना में अब कोई एक मानक लक्षण नहीं ,अलग-अलग लक्षण हैं, क्या यह दवा सभी तरह के लक्षणों पर असरदार होगी?